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अमेरिका की फुलब्राइट फेलोशिप में चुनी गईं चलत मुसाफ़िर की फाउंडर प्रज्ञा

उत्तराखंड…चलत मुसाफ़िर की फाउंडर एडिटर प्रज्ञा श्रीवास्तव को दुनिया के  सबसे प्रतिष्ठित ग्रांट में से एक फुलब्राइट नेहरू मास्टर्स फेलोशिप से नवाजा गया। पूरे भारत में प्रज्ञा सहित केवल दो ही पत्रकारों का चयन हुआ है। भारत में पहली बार पत्रकारिता के क्षेत्र में फुलब्राइट संस्थान ने इस फ़ेलोशिप का आगाज़ किया है।  जिसके साथ पत्रकारिता में भारत की तरफ से फुलब्राइट फेलो बनकर अपना नाम इतिहास में दर्ज कर लिया है। अब प्रज्ञा अमेरिका जाकर अपनी पत्रकारिता में मास्टर्स करेंगी। प्रज्ञा के पास रटगर्स यूनिवर्सिटी से पढ़ाई का ऑफर आ चुका है।

फुलब्राइट नेहरू मास्टर्स फ़ेलोशिप भारत के मेधावी छात्रों को यू. एस. के कॉलेज और विश्वविद्यालयों में मस्टर्स करने का मौका देती है। इस  फेलोशिप को करने वाले छात्रों में लीडरशिप की गुणवत्ता होनी चाहिए, बैचलर डिग्री के साथ कम से कम तीन साल का वर्क एक्सपरिएंस भी जरूरी है। ये फेलोशिप केवल एक या दो साल के लिए होती है।

प्रज्ञा ने अपनी इस सफलता को भारत के घुमक्कड़ों को समर्पित किया है। भारत के पहले ‘ट्रैवल जर्नलिज्म’ मीडिया हाउस ‘चलत मुसाफ़िर’ को बनाने के सफर ने उन्हें प्रभावशाली स्टोरीटेलिंग की ताकत का एहसास हुआ। चलत मुसाफ़िर के जरिये भारत मे अलहदा तरीके की ट्रैवेल जर्नलिज्म करने के सफर के बारे में प्रज्ञा बताती हैं, “भारत में गांवों, कस्बों, शहरों में अनोखी कहानियों की तलाश में हुई घुमक्कड़ी का अनुभव शब्दों से परे हैं। इन तमाम कहानियों के बीच एक किस्सा बताती हूं जिससे चलत मुसाफ़िर के काम का एक सटीक परिचय मिल जाएगा। हिमालय की घाटियों में भटकने के दौरान हमें एक भुतहे गाँव के बारे में पता चला। गाँव का नाम था कुठाल गेट। वहां पहाड़ी पर एक बड़े से जमीन के टुकड़े पर लोहे के खिलौने के बड़े-बड़े टुकड़े बिखरे थे, एक जर्जर सी इमारत थी। इस अजीब और वीरान सी जगह में भूत का तो पता नहीं लेकिन हमें 84 वर्षीय डॉ. योगी एरन मिले। जो कि पिछले 35 वर्षों से फ्री में असहाय लोगों की प्लास्टिक सर्जरी कर रहें हैं। हमने उनपर एक एक्सक्लूसिव स्टोरी की और उनके काम से प्रेरित होकर उनका नाम पद्म श्री के लिए नॉमिनेट किया। उनकी स्टोरी तो वायरल हुई साथ ही साथ एक साल बाद उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया। इस स्टोरी को कवर करने के लिए चलत मुसाफिर को IIMCAA अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। इस सफ़र में मुझे एक बड़ा विज़न मिला कि पूरे भारत में ऐसे हज़ारों डॉ. योगी एरन हैं जो कि जात और धर्म से परे हट कर सेवाभाव में यकीन रखते हैं। इसलिए मैंने और मोनिका ने मिलकर एक ऐसा मीडिया हाउस बनाया जो कि ऐसी ही कहानियों से एक नए भारत की तस्वीर बना सके। चलत मुसाफ़िर अब चार साल का हो चुका है। राजस्थान के मांगणियार गायक, नक्सली इलाकों के सैनिक- शिक्षकों और अरुणांचल के मोनपा- ट्राइब्स जैसी 1000+ कहानियों में 100k+ फॉलोवर्स के साथ 1M+ व्यूज़ हमें मिले हैं।”

चलत मुसाफ़िर की शुरुआत 2017 में प्रज्ञा श्रीवास्तव और मोनिका मरांडी ने साथ मिलकर की।  इन दोनों ने ही IIMC, Delhi से 2015 में हिंदी पत्रकारिता में PG Diploma किया। पढ़ाई खत्म हुई और उसके बाद मोनिका मरांडी ने डीडी न्यूज़ और प्रज्ञा श्रीवास्तव लल्लनटॉप से जुड़ गई। दोनों ने इस बात को महसूस किया कि हिंदी में यात्रा वृतांत न के बराबर लिखे जाते हैं।
2017 में ही दोनों ने अपनी नौकरी को छोड़कर चलत मुसाफ़िर की नींव रखी। जो आज भी भारत में ट्रैवल जर्नलिज्म का पहला मीडिया हाउस है। दोनों ने तय किया की ट्रैवल के बारे में ही स्टोरी नहीं करेगा, चलत मुसाफ़िर लोक कलाओं और उन लोगों के बारे में भी लिखेगा जो ज़मीन पर रहकर लोगों के लिए काम करते हैं। इसके साथ लोगों को उत्साहित करेगा डॉमेस्टिक और सस्टेनेबल टूरिज्म के लिए। साथ ही, बताएगा कि लड़कियों का भारत में घूमना कितना आसान और सुरक्षित है और वो भी कम पैसों में।
चलत मुसाफिर की टीम ने डोमेस्टिक टूरिज्म को बढ़ावा देते हुए हेरिटेज वॉक का भी आयोजन किया। जिसकी मदद से लोग अपने शहर के इतिहास को बेहतर तरीके से जान सकें। दिल्ली के महरौली आर्कियोलॉजिकल पार्क में मशहूर स्टोरी टेलर ‘आसिफ खान देहल्वी’ के साथ और लखनऊ में रेजीडेंसी ‘हिमांशु बाजपाई’ के साथ हेरिटेज वॉक का आयोजन किया। जिसे लोगों ने बहुत सराहा। लॉकडाउन के दौरान जब लोग घूम नहीं रहे थे तब नए घुमक्कड़ों के लिए ट्रेवल की मदद से करियर बनाने पर ऑनलाइन क्लासों का भी इंतजाम किया।  इसके अलावा  इसी साल 5 फरवरी 2022, यानी बसंत पंचमी के ही दिन रिस्पांसिबल टूरिज्म को बढ़ावा देते हुए ऋषिकेश में  ‘स्मृति वृक्ष कैंपेन’ की भी शुरुआत की जिसका उद्घाटन पदम् भूषण अनिल जोशी ने किया।

चलत मुसाफ़िर की फाउंडर एडिटर प्रज्ञा श्रीवास्तव को दुनिया के  सबसे प्रतिष्ठित ग्रांट में से एक फुलब्राइट नेहरू मास्टर्स फेलोशिप से नवाजा गया। पूरे भारत में प्रज्ञा सहित केवल दो ही पत्रकारों का चयन हुआ है। भारत में पहली बार पत्रकारिता के क्षेत्र में फुलब्राइट संस्थान ने इस फ़ेलोशिप का आगाज़ किया है।  जिसके साथ पत्रकारिता में भारत की तरफ से फुलब्राइट फेलो बनकर अपना नाम इतिहास में दर्ज कर लिया है। अब प्रज्ञा अमेरिका जाकर अपनी पत्रकारिता में मास्टर्स करेंगी। प्रज्ञा के पास रटगर्स यूनिवर्सिटी से पढ़ाई का ऑफर आ चुका है।

फुलब्राइट नेहरू मास्टर्स फ़ेलोशिप भारत के मेधावी छात्रों को यू. एस. के कॉलेज और विश्वविद्यालयों में मस्टर्स करने का मौका देती है। इस  फेलोशिप को करने वाले छात्रों में लीडरशिप की गुणवत्ता होनी चाहिए, बैचलर डिग्री के साथ कम से कम तीन साल का वर्क एक्सपरिएंस भी जरूरी है। ये फेलोशिप केवल एक या दो साल के लिए होती है।

प्रज्ञा ने अपनी इस सफलता को भारत के घुमक्कड़ों को समर्पित किया है। भारत के पहले ‘ट्रैवल जर्नलिज्म’ मीडिया हाउस ‘चलत मुसाफ़िर’ को बनाने के सफर ने उन्हें प्रभावशाली स्टोरीटेलिंग की ताकत का एहसास हुआ। चलत मुसाफ़िर के जरिये भारत मे अलहदा तरीके की ट्रैवेल जर्नलिज्म करने के सफर के बारे में प्रज्ञा बताती हैं, “भारत में गांवों, कस्बों, शहरों में अनोखी कहानियों की तलाश में हुई घुमक्कड़ी का अनुभव शब्दों से परे हैं। इन तमाम कहानियों के बीच एक किस्सा बताती हूं जिससे चलत मुसाफ़िर के काम का एक सटीक परिचय मिल जाएगा। हिमालय की घाटियों में भटकने के दौरान हमें एक भुतहे गाँव के बारे में पता चला। गाँव का नाम था कुठाल गेट। वहां पहाड़ी पर एक बड़े से जमीन के टुकड़े पर लोहे के खिलौने के बड़े-बड़े टुकड़े बिखरे थे, एक जर्जर सी इमारत थी। इस अजीब और वीरान सी जगह में भूत का तो पता नहीं लेकिन हमें 84 वर्षीय डॉ. योगी एरन मिले। जो कि पिछले 35 वर्षों से फ्री में असहाय लोगों की प्लास्टिक सर्जरी कर रहें हैं। हमने उनपर एक एक्सक्लूसिव स्टोरी की और उनके काम से प्रेरित होकर उनका नाम पद्म श्री के लिए नॉमिनेट किया। उनकी स्टोरी तो वायरल हुई साथ ही साथ एक साल बाद उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया। इस स्टोरी को कवर करने के लिए चलत मुसाफिर को IIMCAA अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। इस सफ़र में मुझे एक बड़ा विज़न मिला कि पूरे भारत में ऐसे हज़ारों डॉ. योगी एरन हैं जो कि जात और धर्म से परे हट कर सेवाभाव में यकीन रखते हैं। इसलिए मैंने और मोनिका ने मिलकर एक ऐसा मीडिया हाउस बनाया जो कि ऐसी ही कहानियों से एक नए भारत की तस्वीर बना सके। चलत मुसाफ़िर अब चार साल का हो चुका है। राजस्थान के मांगणियार गायक, नक्सली इलाकों के सैनिक- शिक्षकों और अरुणांचल के मोनपा- ट्राइब्स जैसी 1000+ कहानियों में 100k+ फॉलोवर्स के साथ 1M+ व्यूज़ हमें मिले हैं।”

चलत मुसाफ़िर की शुरुआत 2017 में प्रज्ञा श्रीवास्तव और मोनिका मरांडी ने साथ मिलकर की।  इन दोनों ने ही IIMC, Delhi से 2015 में हिंदी पत्रकारिता में PG Diploma किया। पढ़ाई खत्म हुई और उसके बाद मोनिका मरांडी ने डीडी न्यूज़ और प्रज्ञा श्रीवास्तव लल्लनटॉप से जुड़ गई। दोनों ने इस बात को महसूस किया कि हिंदी में यात्रा वृतांत न के बराबर लिखे जाते हैं।

2017 में ही दोनों ने अपनी नौकरी को छोड़कर चलत मुसाफ़िर की नींव रखी। जो आज भी भारत में ट्रैवल जर्नलिज्म का पहला मीडिया हाउस है। दोनों ने तय किया की ट्रैवल के बारे में ही स्टोरी नहीं करेगा, चलत मुसाफ़िर लोक कलाओं और उन लोगों के बारे में भी लिखेगा जो ज़मीन पर रहकर लोगों के लिए काम करते हैं। इसके साथ लोगों को उत्साहित करेगा डॉमेस्टिक और सस्टेनेबल टूरिज्म के लिए। साथ ही, बताएगा कि लड़कियों का भारत में घूमना कितना आसान और सुरक्षित है और वो भी कम पैसों में।

चलत मुसाफिर की टीम ने डोमेस्टिक टूरिज्म को बढ़ावा देते हुए हेरिटेज वॉक का भी आयोजन किया। जिसकी मदद से लोग अपने शहर के इतिहास को बेहतर तरीके से जान सकें। दिल्ली के महरौली आर्कियोलॉजिकल पार्क में मशहूर स्टोरी टेलर ‘आसिफ खान देहल्वी’ के साथ और लखनऊ में रेजीडेंसी ‘हिमांशु बाजपाई’ के साथ हेरिटेज वॉक का आयोजन किया। जिसे लोगों ने बहुत सराहा। लॉकडाउन के दौरान जब लोग घूम नहीं रहे थे तब नए घुमक्कड़ों के लिए ट्रेवल की मदद से करियर बनाने पर ऑनलाइन क्लासों का भी इंतजाम किया।  इसके अलावा  इसी साल 5 फरवरी 2022, यानी बसंत पंचमी के ही दिन रिस्पांसिबल टूरिज्म को बढ़ावा देते हुए ऋषिकेश में  ‘स्मृति वृक्ष कैंपेन’ की भी शुरुआत की जिसका उद्घाटन पदम् भूषण अनिल जोशी ने किया।

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