बेलग्रेड में भारतीय साहित्यकार डा. जरनैल सिंह आनंद को अंतर- राष्ट्रीय अवार्ड चार्टर ऑफ मोरावा देने का ऐलान
पंजाब
डा. आनंद पहले भारतीय साहित्यकार होंगे, जिनका नाम सर्बिया की पोइटस रॉक पर लिखा जायेगा
चंडीगढ़……..बेलग्रेड में भारत के प्रसिद्ध साहित्यकार डा. जरनैल सिंह आनंद को अंतर-राष्ट्रीय अवार्ड चार्टर ऑफ मोरावा देने का ऐलान किया गया है।
अंग्रेज़ी में 150 से अधिक किताबों के लेखक और विश्व को अंतर-राष्ट्रीय अकैडमी ऑफ ऐथिकस देने वाले विश्व साहित्य के महानायक डा. जरनैल सिंह आनंद को 20 से 23 अक्तूबर, 2023 को होने वाले अंतरराष्ट्रीय मीटिंग ऑफ राइटर्ज के लिए न्योता पत्र प्राप्त हुआ है, जहाँ वह विशेष मेहमान के तौर पर शिरकत करेंगे और उनको सर्बियन राईटज़ एसोसिएशन की तरफ़ से अंतर-राष्ट्रीय अवार्ड चार्टर ऑफ मोरावा से सम्मानित किया जायेगा। डा. आनंद पहले भारतीय साहित्यकार हैं, जिनका नाम सर्बिया में लगी हुई पोइटस रॉक पर लिखा जायेगा।
ज़िक्रयोग्य है कि कुछ समय पहले उनको सर्बिया की राइटर्ज एसोसिएशन का ऑनरेरी मेैंबर नियुक्त किया गया था। सर्बिया में हर साल होने वाला यह प्रतिष्ठित समागम सर्बिया को दुनिया की साहित्यिक राजधानी में बदल देता है। विशेष मेहमानों में अमरीका के महान साहित्यकार टी. ओब्रहित, आईज़रबैजान से सिराज़ीदीना सजीदा और इटली के दाँते माफिया भी शिरकत कर रहे हैं। इस मौके पर डा. आनंद की कवितायों की अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद की एक पुस्तक ‘‘बैस्ट पोइटरी ऑफ डा. आनंद ( ऐन ऑफ़रिंग इन ट्रांसलेशन)’’ और ‘‘दी इम्परफ़ैकट आर्टिस्ट’’ ( काव्य पुस्तक) भी रिलीज़ की जायेगी।
सर्बियन राइटर्ज ऐसोसियशन द्वारा करवाए जा रहे इस विश्व स्तरीय समागम में सर्बिया के मनिस्टर ऑफ कल्चर और मेयर शिरकत करेंगे और राष्ट्रीय टैलिविज़न पर मेहमान साहित्यकारों के साथ इंटरव्यू पेश की जायेगी। सर्बिया में अपने नोबल विजेता आईवो अन्दरिक (1961) को शिद्दत के साथ याद किया जाता है। भारत के नोबल विजेता श्री राबिन्दर नाथ टैगोर ने भी इस समागम में शिरकत की थी, जब वह 1926 में सर्बिया आए थे। टैगोर के बाद सर्बिया के लेखक संघ के मेैंबर बनने वाले और विशेष मेहमान के तौर पर शिरकत करने वाले डा. आनंद पहले भारतीय हैं। पंजाब के लिए यह विशेष तौर पर गौरव की बात है कि एक पंजाबी को विश्व स्तर पर यह सम्मान प्राप्त हुआ है।
डा. आनंद ने चालीस साल विद्या के क्षेत्र को समर्पित किये हैं। इस अरसे के दौरान काव्य रचना के प्रति उनका लगाव बना रहा। उनको रूमी की धरती ईरान से जी भर कर प्यार और सम्मान हासिल हुआ। चार किताबों का फ़ारसी में अनुवाद किया गया और डा. फारसी की सहायता से बाइउ- टेक्स्ट का सिद्धांत दिया । डा. आनंद ने सात काव्य पुस्तकें भी माँ- बोली की झोली डालीं हैं। डा. आनंद को क्रॉस ऑफ पीस, क्रॉस ऑफ लिटरेचर, वर्ल्ड आइकन ऑफ पीस और यूक्रेन से फ्रांज काफ्का अवार्ड हासिल हुए हैं। उन्होंने कुछ समय पहला अंतर-राष्ट्रीय अकैडमी ऑफ ऐथिकस की भी स्थापना की और चार वर्ल्ड पोइटरी कान्फ़्रेंसें करवा के साहित्य के महा युग में अपना हिस्सा डाला।
देश-विदेश में यश अर्जित करने वाले व्यक्तियों में विशेष स्थान रखने और सारी दुनिया में विचरने वाले डा. आनंद अपनी धरती अपने लोगों के लिए अनजान रहे हैं। अब जब बेलग्रेड जैसे देश में उनको प्रसिद्धि प्राप्ति हुई है और यह हर भारतीय और हर पंजाबी के लिए बड़ी उपलब्धि है।
डा. आनंद की सबसे ज़्यादा चर्चित पुस्तक ‘‘लस्टिस’’ एक महाकाव्य है जिसको कुछ यूनिवर्सिटियाँ अंग्रेज़ी साहित्य में शामिल कर रही हैं। डा. आनंद दुनिया के एकमात्र कवि हैं, जिन्होंने 9 महाकाव्य लिखे हैं और अपनी क्षमता से दुनिया को प्रभावित किया है।