नई अधिसूचना में एमएसपी कानून बनाने से मोदी सरकार का इनकार : बीबा राजविंदर कौर राजू
पंजाब
महिला किसान यूनियन ने भाजपा सदस्यों वाली समिति के प्रस्ताव और एजेंडा को किया खारिज
जालंधर ….. महिला किसान यूनियन की प्रधान बीबा राजविंदर कौर राजू ने फसलों के न्यूनतम खरीद मूल्य (एमएसपी) पर केंद्र सरकार द्वारा गठित ‘सरकारी समिति’ को खारिज करते हुए मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि किसानों के हितों के खिलाफ जारी ताजा अधिसूचना में बीजेपी की बिल्ली थैले से बाहर आ गई है और यह भगवा पार्टी किसी भी तरह से किसानों का कल्याण नहीं चाहती है।
आज यहां जारी एक बयान में महिला किसान यूनियन की अध्यक्ष बीबा राजविंदर कौर राजू ने कहा कि केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की इस अधिसूचना से पहले संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा किसानों के प्रति मोदी सरकार की मंशा को लेकर जो भी शंकाएं व्यक्त की गई थी वह सच्च साबित हो गई है क्योंकि केंद्र ने इस आधिकारिक समिति की प्रस्तावना और एजेंडे में एमएसपी पर कानून बनाने का कोई जिक्र नहीं किया जिसके कारण एमएसपी कानून बनाने पर कोई सुझाव ओर विचार ही नहीं किया जा सकेगा।
महिला किसान नेता ने इस समिति के ढांचे की आलोचना करते हुए कहा कि देश के 500 से अधिक किसान संगठनों के फ्रंट ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ के केवल तीन प्रतिनिधियों को सदस्य के रूप में लिया जाएगा, जबकि मोदी सरकार ने अपने पांच वफादारों को समिति के सदस्य बनाया है जिन्होंने खुले तौर पर किसान विरोधी कानूनों की वकालत की है और सीधे भाजपा और आरएसएस से जुड़े हैं या उनकी नीतियों के समर्थक हैं।
बीबा राजू ने कहा कि इस केंद्रीय समिति के अध्यक्ष पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल हैं और प्रमुख सदस्यों में नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद शामिल हैं और ये दोनों किसान विरोधी कानूनों के निर्माता हैं। किसान नेता ने कहा कि इस समिति में कृषिविदों और खेती अर्थशास्त्रियों के अलावा विभिन्न राज्यों के मुख्य सचिव स्तर के नौकरशाहों को शामिल किया गया है, लेकिन कृषि राज्यों पंजाब और हरियाणा के किसी भी वरिष्ठ अधिकारी को इसमें शामिल नहीं किया गया है। इसी तरह, देश के तीन कृषि विश्वविद्यालयों से तीन कृषिविदों को सदस्य बनाया गया है, लेकिन पंजाब और हरियाणा के कृषिविदों की उपेक्षा की गई है, जो केंद्रीय भाजपा सरकार के गलत इरादों को दर्शाता है।
महिला किसान नेता ने यह भी आरोप लगाया कि मोदी सरकार एमएसपी गारंटी क़ानून बनाने की बजाए इस समिति के माध्यम से साल 2024 के आम संसदीय चुनावों तक समय बिताना चाहती है क्योंकि इस समिति के प्रस्ताव में सरकार को रिपोर्ट सोपने की कोई समय सीमा फिक्स नहीं की गई और इस समिति को सौंपे गए बड़े एजेंडे की संयुक्त किसान मोर्चे ने केंद्र से कभी कोई मांग ही नहीं की।
महिला किसान नेता बीबा राजू ने आशंका व्यक्त की कि मोदी सरकार अप्रत्यक्ष रूप से इस समिति के माध्यम से सदस्यों के सुझाव लेकर काले खेती अधिनियमों को वापस ला सकती है, क्योंकि इस समिति के प्रस्ताव में एक ऐसी मद शामिल है। इसलिये संयुक्त किसान मोर्चा और देश के किसानों को भाजपा सरकार की दुर्भावना के प्रति पहले से ही सतर्क हो जाना चाहिए।